जयप्रकाश नारायण द्वारा फणीश्वरनाथ रेणु को लिखा गया पत्र
कैंप: छ्परा मंच
कदमकुआं, पटना-3
मुजफ्फरपुर, 5 दिसंबर 1970
प्रिय रेणु जी,
पिछली बार जब मैं पटना गया तो आपसे मिलना चाहा था। लेकिन समयाभाव के कारण आपसे संपर्क नहीं किया जा सका। मैं 18-19 दिसंबर को पटना में रहूँगा। उस समय यदि पटना में रहें तो मुझसे मिलने की कृपा करें।
यहाँ मैं जो काम कर रहा हूँ, उसके अनुभवों पर आधारित मेरा एक लम्बा-सा लेख ‘आर्यावर्त’ में 29 नवंबर से लगातार कई किस्तों में प्रकाशित हुआ है। आपने देखा होगा। गाँव की कठोर वास्तविकताओं को निकट से देखने का यहाँ अवसर मिला है। 23 वर्षों के स्वराज के बावजूद भारत माता का ‘आँचल’ सचमुच कितना ‘मैला’ है! इसमें नक्सलवाद नहीं तो और क्या पलेगा? मैं चाहता हूँ कि आप जैसे समर्थ साहित्यकार इन वास्तविकताओं को आकर देखें और उसकी तस्वीर साहित्य में उतारें। ‘मैला आँचल’ लिखकर आपने साहित्य-लेखन या उपन्यास-लेखन की जो परंपरा शुरू की थी, वह समाप्त हो गयी-सी लगती है। आज की पृष्ठभूमि में उसे पुनर्जीवित कर आगे बढ़ाने की जरूरत है। यह तो जाहिर है कि इस देश में भावी क्रांति का क्षेत्र गाँव ही होगा, और नव निर्माण का आरंभ भी वहीं से होगा। अतः क्रांतिकारी नव साहित्य का सृजन गाँव में बैठ कर ही किया जा सकता है।
पता नहीं, आपका स्वास्थ्य इन दिनों कैसा है? यदि स्वास्थ्य अनुकूल हो और यहाँ आने की तैयारी हो तो एकाधिक बार यहाँ भी आइए। मेरा ख्याल है, कथा- साहित्य के लिए आपको पर्याप्त सामग्री यहाँ मिलेगी।
इन दिनों मैं अपना अधिकाधिक समय और शक्ति इसी क्षेत्र में लगा रहा हूँ। यदा-कदा अत्यंत आवश्यक कार्य से ही बाहर जाता हूँ। यहाँ जब भी आना चाहें, सच्चिदा बाबू के द्वारा पूर्व सूचना देकर आ जाएँ।
आपका सस्नेह
जयप्रकाश नारायण
(यह पत्र जेपी ने संभवतः मुसहरी, मुजफ्फरपुर से लिखा था। तब जेपी सर्वोदय आंदोलन में सक्रिय थे और मुसहरी में नक्सलवाद की समस्या का हल खोजने में लगे हुए थे। वहां नक्सलियों की समस्या को समझने और उनसे संपर्क- संवाद की कोशिश में वे व्यस्त थे।इस काम में सहयोग के लिए उन्होंने एक लेखक का भी सहयोग मांगा।आज यह बात अकल्पनीय लगती है।
पुण्य तिथि पर रेणु के साथ इस पत्र की याद आई। पत्र में जिस सच्चिदा बाबू की चर्चा है, वे जेपी के सचिव सच्चिदानंद थे।)