जयप्रकाश कर्दम की कविता 'आधी दुनिया की आवाज'

जयप्रकाश कर्दम


 


आधी दुनिया की आवाज



वह भी देवी है किंतु दीन
 जननी है किंतु हीन
 वह भी पूजनीय है किंतु उपेक्षित
 शक्ति है किंतु अधीन
 स्त्री होकर भी 
नहीं बन पाती हिस्सा 
उस समाज का 
जो कहता है खुद को 
गर्व से आधी दुनियां
स्त्री होने पहले 
होती है वह एक जाति
पहचाना जाता है उसे
उसकी जाति से
किया जाता है व्यवहार भी
उसी के अनुसार
कैसे करे वह अनुभव
एक होने का
कैसे माने खुद को 
एक समाज
आधी दुनियां की आवाज।


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