सन्तोष चतुर्वेदी की कविता

आभार


जिन्होंने स्मृति को बचाए रखा
हम सबके लिए करीने से
जिन्होंने सब कुछ अतीत हो जाने के खिलाफ
अपनी एकल लड़ाई जारी रखी
उनका आभारी हूँ


लुप्तप्राय जीवों, 
जीवाश्म बनने की कगार पर खड़े जानवरों, 
हारवेरियम में रखे जाने लायक बना दिए जाने वाले पेड़ पौधों
नाम तक सीमित कर दिए जाने वाले चिरई चुरुङ्ग को 
उनका वर्तमान लौटाने की जद्दोजहद में जुटे मनस्वियों का
आभारी हूँ


सचमुच
हृदय से आभारी हूँ
जिन्होंने पर्यायवाची बचा कर
शब्दों की दुनिया को गुलज़ार बनाए रखा
जिन्होंने बारिश की फुहार को 
महज़ चित्र बनने से बचाए रखा


पुराने पड़ चुके लोग भी कुछ नया सोच सकते हैं
नए लोग भी पोंगापंथी सोच के हो सकते हैं
जो यह जानते हैं
और पुरानी दुनिया का तार
नई दुनिया से आज भी जोड़ रखे हैं
उनका आभारी हूँ