चिड़ियाघर
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यह एक बड़ा भू-भाग है
दूर-दूर तक फैले पेड़ हैं
चिड़िया है, हाथी और शेर हैं
हिरन हैं, जिर्राफ और जेब्रा
मछलियां हैं और कुदरत के सबसे कोमल
निरीह, सफेद और भूरे खरगोश
रंग-बिरंगे सांप और अजगर.
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जंगल नहीं यह लखनऊ का चिड़ियाघर है
एक बड़े भू-खण्ड को बांधती चारदीवारी के बीच
उड़ने को बेताब चिड़ियों को आसमान में
दस फुट की ऊंचाई पर घेरता लोहे का जाल,
शेर की दहाड़ को सुनती
पत्थर की दीवार,
यहां शिकार शेर नहीं करता
आदमी करता है उसके लिये
विशालकाय हाथी चिंघाड़ते हैं
सीखचों में बंधकर.
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यहां बहुत आसान है हुक्कू बन्दर की हूकें सुनना
पर दर्शक कहते हैं
हमने उसकी हुक्कू-उक्कू सुनी है
वह काला नर हुक्कू कुछ दिनों पहले हूंकता हुआ
अकेला छोड़ गया भूरी मादा हुक्कू को.
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अजगर के पिंजरे के सामने
मेरा तीन वर्षीय बेटा दहल गया
अजगर को देखकर नहीं
उसके सामने बुत बने तीन सफेद-भूरे खरगोशों को देखकर
उलटता-पलटता वह अजगर धीरे-धीरे
लील रहा था एक जिन्दा खरगोश
बगल के पिंजरे का कोबरा
सरसराता हुआ निकल गया मेरे भीतर
पापा ! चीकू को बाहर निकालो ! पापा !!
इस शीशे के बड़े जार में
दुनिया के सबसे निरीह
घास खाने वाले खरगोशों को कौन डालता है ?
यह सच है कि आदमी मुहैया करा रहा है
इक्कीसवीं शताब्दी में
अजगर का शिकार.
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यह सारा आयोजन किसलिये है ?
इस शैतानी अमानवीयता का प्रदर्शन किसलिये है ?
ताकि शहरी गुड्डी और पिन्टू मजा उठा सकें
इन रंग-बिरंगे जानवरों का
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ये जिन्दा जानवर नहीं हैं
उन्हें देखने तो जंगली बीहड़ों में
खुद को बचाते जाना होता है
रास्ता बनाते हुए
पेड़ की एक पत्ती को भी न हिलाते हुए.
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आदमी को तो प्रकृति ने बनाया था इसलिये
ताकि वह जंगल की सत्ता से रूबरू हो
समझे जीवन का मोल
कुछ और आसान बना सके जीवन को
सारे के सारे जीवन के साथ
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पर आदमी ने खरगोश के
बच जाने के भ्रम को भी खत्म कर दिया
सारे जानवरों को डाल दिया उनके त्रासद अलगाव में
अहर्निश जिन्दगी और मौत का रोमांच खत्म हुआ,
यहां एक निश्चितता है
और इस निश्चितता में वे बुतों के मानिन्द हैं.
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