गाँधी हमारे समय में आचरण की सभ्यता के प्रथम नागरिक हैं. गाँधी ने संयम पर बल दिया. विशेषण से आदमी की पहचान नहीं करनी चाहिए. आदमी की पहचान उसके आचरण से होति है. उपरोक्त बातें प्रो. राजेंद्र कुमार ने सृजन सरोकार पत्रिका के गाँधी विशेषांक के लोकार्पण के अवसर पर अपना अध्याक्षीय वक्तव्य देते हुए, बाल भारती स्कूल में कहीं. उन्होंने आगे कहा कि फरिस्ते से इंसान बनना बेहतर है पर इसमें मेहनत बहुत लगती है. गाँधी ने कहा था कि निस्क्रिय जड़ता और हिंसा में अगर मुझे चुनना हो तो मैं हिंसा को चुनुँगा. एक बार गाँधी मैला साफ करने से मना करने पर बा पर हिंसक हो उठे थे और घर से बाहर तक करने लगे. आज हमें गाँधी के बताए सत्य के रास्ते पर चलने के लिए झाड़ू नहीं बल्कि जान हथेली पर ले कर चलना होगा. आज गाँधी हमारे लिए और भी प्रासंगिक हो जाते हैं जब हमारे ऊपर गलत तथ्य थोपे जा रहे हैं.
वरिष्ठ साहित्यकार नीलकांत ने सृजन सरोकार पत्रिका के गाँधी विशेषांक की प्रशंषा करते हुए गाँधी के व्यक्तित्व के उन पहलुओं पर भी चर्चा की जो उन्हें आलोचना की परिधि में लाती हैं.
अली अहमद फातमी ने कहा कि हादसे जिंदगी को मजबूत बनाते हैं. अफ्रिका में हुए गाँधी के प्रति दुर्व्यवहार का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि गाँधी को भी एक हादसे ने ही मजबूत बनाया. उन्होंने सीखा कि अंग्रेजों से हथियारों से नहीं संस्कारों से लड़ा जा सकता है. उन्होंने सच बोलने की पैरवी की और वकालत से अलविदा किया.
बतौर वक्ता डॉ. कुमार विरेंद्र ने कहा कि भारतीयता को पहचानना है तो जनता के भीतरसे ही सीखना चाहिए. उन्होंने कहा कि पत्रिका सृजन सरोकार रचनात्मक हस्तक्षेप करती है.
विंध्याचल यादव ने कहा कि गाँधी ने क्रोध को पाला और उसे बाहर नहीं होने दिया. गाँधी का चर्खा स्वावलंबन की भषा है.
डॉ. दीनानाथ मौर्य ने कहा कि गाँधी को मिथक से बाहर निकालना जरूरी है.
डॉ. लक्षमण प्रसाद गुप्त ने पत्रिका में छपे गाँधी के पत्रों पर केंद्रित लेख की प्रशंषा करते हुए कहा कि ये बड़ी बात है कि 'गाँधी जहाँ रहते हैं', बस इतना ही लिख देना एक मुकम्मल पता बन जाता है.
शिवानंद मिश्र ने कहा कि इस पत्रिका की खाशियत है कि इस अंक में गाँधी की प्रशंषा ही नहीं बल्कि आलोचना भी की गई है. पहली बार राजनीति में नैतिकता लेकर गाँधी ही ले कर आए. उन्होंने आम जनमानस से भय को दूर किया.
इस से पहले सृजन सरोकार पत्रिका के संपादक गोपाल रंजन ने आधार वक्तव्य देते हुए आए हुए अतिथियों का स्वागत किया. इसके बाद पत्रिका का लोकार्पण किया गया.
वरिष्ठ कवि हरीश चंद्र पाण्डे, अनिल रंजन भौमिक, उमा शर्मा, जूही शुक्ला, श्री रंग, विभोर अग्रवाल, संगम लाल, आशिष, अरविंद गौतम, संतोष जैन, तलत महमूद, ताहिरा आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे.
गाँधी हमारे समय में आचरण की सभ्यता के प्रथम नागरिक हैं.